10 दिसंबर, आधिकारिक आख़िरी रात, हर तरफ़ ख़ुशी की लहर थी। ट्रैक्टरों पर गाने चल रहे थे, किसान नाच रहे थे, हाथ में तिरंगा लिए, ऐसा था सिंघू ग़ाज़ीपुर बॉर्डर का नज़ारा।
मैंने देखा कई लोग अब पिकनिक की तरह ग़ाज़ीपुर पर परिवारों के साथ आ रहे थे ये जानते हुए कि अब ये किसान यहाँ नहीं होंगे, अब ये टेंट यहाँ नहीं होगा, अब आंदोलन की निशानी हट जाएगी , ये ऐतिहासिक जगह दोबारा देखने को नहीं मिलेगी।

बात सही भी है , ये बॉर्डर तो अब निशानी हैं मोदी सरकार के घुटने टेकने की, 700 किसानों को बेवजह खोने की, एक तानाशाही देश के किसानों पर थोपने की, आने वाली पीढ़ियों के लिए बुजुर्गों की लड़ाई की, अपने आत्म सम्मान तक को खोकर दुनिया में बदनाम होने वाली बूढ़ी माँओं की, ये निशानी हैं सत्य की।


पर ये निशानी मीडिया से गोदी मीडिया बनने वालों की भी है, मीडिया की इज़्ज़त तार तार होने की भी है।मीडिया की बेशर्मी की भी है। अब कभी पत्रकार जनता के बीच से रिपोर्टिंग न कर पाएँ इस सच की भी है। वहीं सोशल मीडिया के उठने की है। कई स्वतंत्र प्लैटफ़ॉर्म के औचित्य की है। मेनस्ट्रीम मीडिया में इक्का दुक्का नामों के अलावा शायद ही कोई था जिसने किसानों के बीच जाकर बदतमीजियां न की हों, उन पर झूठे आरोप न लगाए हों। उन चैनलों के तो नाम तक लेने की अब ज़रूरत नहीं, सबको मुँह ज़बानी पता है।
ऐसे में 10 दिसंबर को मेरे पास एक सज्जन आए, और बहुत गंभीरता से एक सवाल किया , गंभीरता इसलिए कि वो वाक़ई मेरा जवाब सुनना चाहते थे।
उन्होंने पूछा , बहन! आपका मन नहीं करता गोदी मीडिया बनने का?


एक बार के लिए तो मुझे ये सवाल अटपटा लगा क्योंकि मुझे ये ही समझ नहीं आया कि किसी का ‘मन’ क्यों करेगा गोदी मीडिया बनने का! लेकिन आगे जब उन्होंने स्पष्ट किया तो मैं समझ गई गोदी मीडिया बनना किसी की दिली ख्वाहिश क्यों हो सकती है!
उन्होंने कहा,’दरअसल हम ये बात जानते हैं गोदी मीडिया बनने से किसी की नौकरी सुरक्षित रहेगी, उस पर कभी कोई आँच नहीं आएगी, प्रमोशन भी मिलेंगे, सरकार से हर तरह के फ़ेवर मिलेंगे!’
एक दूसरे सज्जन ने कहा,”आपको सोशल मीडिया पर किसी ने गाली दी, आपने ट्वीट किया लेकिन नोएडा पुलिस ने आपको जवाब तक नहीं दिया। यही किसी गोदी मीडिया वाले के साथ होता तो तुरंत कार्रवाई होती। तो बताइए , गोदी मीडिया बनना कोई क्यों न चाहेगा कोई? इसलिए मैंने आपसे पूछा आपका मन नहीं करता गोदी मीडिया बनने का?”
तो मेरा जवाब था, सर! गोदी मीडिया बनने का मन तो दूर , मेरा उन सड़कों से गुजरने का भी मन नहीं करता जहां इनके दफ़्तर खड़े हैं।

सच बताऊँ तो मुझे इन लोगों को देखकर उल्टी आती है, क्योंकि इनका काम घिनौना है। रही बात फ़ेवर की, तो न पहले चाहिए थे न अब। अगर कोई सरकार ये देखकर आपको गाली देने वालों के ख़िलाफ़ एक्शन लेती हो कि आप गोदी हैं या नहीं, तो ऐसी सरकार से तो गोदियों को भी कोई उम्मीद नहीं करनी चाहिए। क्योंकि इनके न्याय के फ़िल्टर पर धूल चढ़ चुकी है। उस धूल में ये लोग भी एक दिन दिखना बंद हो जाएँगे।

और अब तो गोदियों की इतनी भीड़ है , वहाँ भी नीलामी होना शुरु होगी, सबसे बड़ा गोदी बनने की बिड कौन रखेगा!
जो रह गए वो धोबी के कुत्ते की तरह रह जाएँगे ।
बस फिर मैं आगे चली गई, लंगर में गर्मा गर्म स्वादिष्ट कढ़ी चावल खाया और आँखों में ख़ुशी की चमक लेकर निकल गई।
सच कहूँ तो मेरा परिवार ही मुझे कभी गोदी मीडिया नहीं बनने देता जनता बाद में, सबसे पहले मेरा बहिष्कार मेरे अपने घर में हो जाता। इसलिए मैं कभी कभी सोचती हूँ, इन गोदी मीडिया वालों के क्या परिवार नहीं? या परिवार में मूल्य ही नहीं!