ऐसी कौन सी चीज़ है जिसके बारे में सोचकर हम सभी को रात में चैन की नींद आ जाती है? चाहे कितनी ही शान शौकत वाली जगह चले जाएं, ऐसा क्या है जिसे हम याद करते हैं? वह क्या है जिसका ख्याल हमेशा हमारे ज़ेहन में चलता रहता है भले ही सबसे पीछे, लेकिन चलता जरूर है? वो है हमारा अपना घर, हमारी अपनी छत्त।
हम संतुष्ट रहते हैं की पुरे दिन बाहर काम करके रात को एक ऐसी जगह है जहाँ हम जा सकते हैं, जो हमारा ठिकाना है। ज़रा उस व्यक्ति के बारे में सोचिये जिसके पास आवास ही न हो।
काम करने के बाद क्या आशा रखता होगा वो बेघर आदमी? इसी सोच में डूबा रहता होगा की आज की रात जैसे तैसे बीत जाए । वो अपनी रोटी दाल कहाँ बनाते होंगे, नहाने के लिए कहाँ जाते होंगे, खुले में शौच करने को मज़बूर होते होंगे । इन सब का इंतज़ाम हो भी जाए तो बारिश के मौसम में किस हाल में गुज़ारा करते होंगे ये लोग।
बारिश आने से भले ही किसान की ख़ुशी की कोई सीमा न हो, लेकिन घर बैठे लोगों को ही इतनी परेशानी होती है तो आखिर उनका क्या जिनके पास अपना सर ढकने की जगह ही ना हो। कहाँ आसरा लेते होंगे वो लोग उन गरजते बादलों के बीच, उन ठंडी हवाओं के बीच,ना खाना बनाने का ठिकाना न रात को सोने का। कच्चे घरों में रहने वालो की परेशानियां भी कम नहीं होती।
इंसान कमाता ही अपने सर पर छत्त बनाने के लिए है , अपना सर ढकने के लिए एक जगह होना कितना जरुरी है ये हम सब जानते हैं। पुरे दिन काम या मज़दूरी करने के बाद आदमी एक ही तो उम्मीद करता है कि, घर जा कर रात भर आराम से सो सके ताकि अगली सुबह तसल्ली से काम पर जा सके।
यूपी चुनाव कवर करने के दौरान हमे पता चला की न जाने कितने लोग हैं जिनके पास अपना खुद का आवास नहीं है। जिनके पास है तो वो ठीक अवस्था में नहीं हैं। किसी का घर बहुत पुराना होने की वजह से ढहने की कगार पर है तो किसी का घर बारिश की वजह से गिर रहा है। और कितने तो ऐसे हैं की उनका किसी भी अवस्था में घर ही नहीं है।
2015 में एक योजना शुरू की गई थी जिसका नाम है “प्रधान मंत्री ग्रामीण आवास योजना”। जिसका उद्देश्य था की पूरे भारत के समस्त ग्रामीण इलाकों में बेघरों को घर उपलब्ध कराया जा सके, और जिनके पास कच्चा घर हो उनका घर पक्का किया जाये। और ध्यान देने वाली बात है की बहुत से लोगों के मकान बनवाये गए, बकायदा उनकी मदद भी की गयी। लेकिन अभी भी कई लोग ऐसे हैं जिनको इस योजना का लाभ अब तक नहीं मिल पाया है। हमने जब यूपी के औराई और हरदासपुर इलाके के गाँवों में इस मुद्दे पर ग्रामीणों से बातचीत की उन्होंने बताया कि अधिकारी उनका नाम लाभार्थी सूची में शामिल करने के लिए उनसे पहले 20,000- 30,000 रुपये मांगते हैं।
सोचने वाली बात है की अगर इनके पास इतने पैसे होते तो क्या ये अपना घर खुद बनवाना ही नहीं शुरू कर देते ? क्या इन्हे फिर योजना की जरुरत पड़ती ?
ये ज्यादातर दिहाड़ी मज़दूर मजदूर होते हैं, जिनके मुँह में निवाला ही उनकी रोज मिली मज़दूरी से जाता है। सरकार को चाहिए कि ग्रामीण इलाकों में रहने वाले गरीब लोगों तक इस योजना का अधिकतम लाभ पहुंचे, और साथ ही ज़रूरी है कि किसी भी प्रकार का भ्रष्टाचार नहीं हो।