आज फ्रंटियर गांधी के नाम से मशहूर खान अब्दुल गफ्फार खान की जन्म तिथि है। ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान का जन्म 6 फरवरी 1890 को पेशावर(पाकिस्तान) में हुआ था। उनके पिता ने पठानों के विरोध के बावजूद उनकी पढ़ाई मिशनरी स्कूल में कराई थी। आगे की पढ़ाई के लिए वे अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में गए।
20 साल की उम्र में उन्होंने अपने गृहनगर उत्मान जई में एक स्कूल खोला जो कुछ ही महीनों में मशहूर हो गया। लेकिन अंग्रेजी हुकूमत ने उनके स्कूल को 1915 में बैन कर दिया।फिर अगले 3 साल तक उन्होंने पश्तूनों को जागरूक करने के लिए सैकड़ों गांवों की यात्रा की।इसके बाद से ही लोग उन्हें ‘बादशाह खान’ नाम से पुकारने लगे थे।
साल 1988 में पाकिस्तान सरकार ने उनको पेशावर स्थित घर में नज़रबंद कर दिया था। उसी दौरान 98 वर्ष की आयु में 20 जनवरी, 1988 को उनकी मृत्यु हो गयी थी।उन्होंने अपनी जिंदगी के 35 साल जेल में बिताए। साल 1987 में ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान को भारत रत्न नवाजा गया था। वे पहले गैर-भारतीय थे, जिन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजा गया।
एकनाथ ईश्वरन ने गफ्फार खान की जीवनी ‘नॉन वायलेंट सोल्जर ऑफ इस्लाम’ में लिखा कि “भारत में दो गांधी थे,एक मोहनदास कर्मचंद और दूसरे ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान।” स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी के सहयात्री रहे भारत रत्न ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान को कई नामों से जाना जाता है।उन्हें सरहदी गांधी, सीमान्त गांधी, बादशाह खान, बच्चा खाँ भी कहते हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के कट्टर अनुयायी होने के कारण उनको ‘सीमांत गांधी’ कहा जाने लगा। महात्मा गांधी के अहिंसा और सत्याग्रह जैसे सिद्धान्तों से प्रेरित होकर उन्होंने समाज को जागरूक करने के लिए “खुदाई खिदमतगार” नाम से एक संगठन बनाया। ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान का मानना था कि इस्लाम अमल, यकीन और मोहब्बत का नाम है।
नमक सत्याग्रह के दौरान ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान को गिरफ्तार कर लिया गया था। इसके विरोध में “खुदाई खिदमतगारों” के एक दल ने प्रदर्शन किया। लेकिन अंग्रेजों ने निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाने का आदेश दे दिया,जिसमें 200 से ज्यादा लोग मारे गए।उन्होंने कांग्रेस के समर्थन से भारत के पश्चिमोत्तर सीमान्त प्रान्त में ऐतिहासिक ‘लाल कुर्ती’ आन्दोलन चलाया था।
आजादी की लड़ाई में आंदोलन करते हुए उन्हें कई बार कठोर जेल यातनाओं का शिकार होना पड़ा। जेल में ही उन्होंने सिख गुरुग्रंथ, गीता का अध्ययन किया। उसके बाद साम्प्रदायिक सौहार्द्र के लिए गुजरात की जेल में उन्होंने संस्कृत के विद्वानों और मौलवियों से गीता और क़ुरान की क्लास लगवाई।
1919 में पेशावर में मार्शल लॉ लगा तो ख़ान साहब ने अंग्रेजों के सामने शांति प्रस्ताव रखा। लेकिन शांति प्रस्ताव ना मानकर अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ़्तार कर लिया। 1930 में गाँधी-इरविन समझौते के बाद ही अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान को जेल से रिहा किया गया। साल 1937 के प्रांतीय चुनावों में कॉंग्रेस ने पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत की प्रांतीय विधानसभा में बहुमत प्राप्त की और ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान मुख्यमंत्री बने। लेकिन फिर साल 1942 में वह फिर गिरफ्तार कर लिए गए। फिर 1947 में आजादी के बाद ही उन्हें जेल से रिहा किया गया।
ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान ने बँटवारे का भी विरोध किया था।
जब ऑल इंडिया मुस्लिम लीग भारत के बंटवारे पर अड़ी हुई थी, तब ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान ने इसका सख्त विरोध किया। जून 1947 में उन्होंने पश्तूनों के लिए पाकिस्तान से एक अलग देश की मांग की थी। लेकिन ये मांग नहीं मानी गई और बँटवारे के बाद वे पाकिस्तान चले गए।
मैकलोहान ने अपनी डॉक्युमेंट्री “द फ्रंटियर गांधीः बादशाह खान, अ टॉर्च ऑफ पीस” के बारे में बताते हुए लिखा- “दो बार नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित हुए बादशाह खान की जिंदगी और कहानी के बारे में लोग कितना कम जानते हैं। 98 साल की जिंदगी में 35 साल उन्होंने जेल में सिर्फ इसलिए बिताए कि इस दुनिया को इंसान के रहने की एक बेहतर जगह बना सकें। सामाजिक न्याय, आजादी और शांति के लिए जिस तरह वह जीवनभर जूझते रहे, वह उन्हें नेल्सन मंडेला,मार्टिन लूथर किंग जूनियर और महात्मा गांधी जैसे लोगों के बराबर खड़ा करती हैं।”