
आज भारत सरकार ने न्यू इंडिया का “ऐतिहासिक” फरमान सुनाया है।न्यू इंडिया में सरकार अपने हिसाब से इतिहास लिखती है और मिटाती है। इस फरमान में सरकार ने आदेश दिया है कि अब से इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति या अनंत लौ का विलय नेशनल वॉर मेमोरियल में हो जाएगा।विपक्ष ने सीधे तौर पर प्रधानसेवक को निशाने पर लिया है।
विपक्ष नेता सहित तमाम लोगों का कहना है कि मोदी सरकार ने 50 सालों से चली आ रही परंपरा को तोड़ा है।उनका कहना है कि जो अनंत लौ कभी बुझी नहीं उसे तानाशाही सरकार ने बुझा दिया।
इसके बाद से ही सोशल मीडिया पर लोगों का मिक्स रिएक्शन देखने को मिल रहा है। लोगों ने सरकार के समर्थन और विरोध में पोस्ट करना शुरू कर दिया। सरकार के इस फ़ैसले को हर बार की तरह “मास्टरस्ट्रोक” साबित करने में मीडिया तुली हुई है।आईटी सेल जो ‘टेलीप्रॉम्पटर’ मुद्दे पर ज़्यादा कुछ नहीं कर पाया था उसे इस मुद्दे को जोरशोर से उठाने का जैसे फ़रमान मिल गया है। इसे न्यू इंडिया का न्यू इतिहास बनानी की आड़ में उठाया कदम कहा जा सकता है। लेकिन आरोप सरकार पर ये हैं कि ऐसा करके ये पूराने इतिहास को नष्ट करना चाहते हैं। सरकार की डिक्शनरी में दर्ज इस न्यू इंडिया में जलियांवाला बाग नरसंहार को ग्लोरिफाई करना भी सही है और 50 सालों से चली आ रही परंपरा को तोड़ना भी जैसे सही ही है।
सरकारी सूत्रों का सबसे मनपसंद ‘एएनआई’ दावा कर रहा है कि वर्ल्ड वॉर-1 के समय जो भारतीय ब्रिटिश सैनिक शहीद हुए वह न्यू इंडिया में एक धब्बे जैसे हैं जिसे देख कर सरकार को भारत की गुलामी याद आती है। शायद सरकार यह कहना चाहती है कि न्यू इंडिया में उन 84,000 सैनिकों का शहीद होना उनके लिए मायने नहीं रखता है। प्रधान सेवक शायद भूल गए हैं कि उन्होंने खुद ही 2017 में इजराइल के हाईफा में जाकर वर्ल्ड वॉर में शहीद भारतीय ब्रिटिश सैनिकों को अपनी श्रद्धांजलि दी थी। शायद प्रधानसेवक ये भी भूल गए कि 2015 में वो और उनकी पूरी कैबिनेट ने वर्ल्ड वॉर 1 के समय शहीद हुए सैनिकों की शहादत को श्रद्धांजलि दी थी।
प्रधान सेवक भले ही भूल गए लेकिन हम उन्हें याद दिलाते रहेंगे कि उन्होंने कब-कब,क्या-क्या कहा था।
भारतीय सेना के पहले चीफ फील्ड मार्शल करिअप्पा और जनरल सुंदरजी भी भारतीय ब्रिटिश आर्मी में थे तो क्या भारत सरकार के विशिष्ट सूत्रों को यह लोग गुलामी के प्रतीक लगते हैं! या फिर भारत सरकार इनके बलिदानों को भूल गई?
सोशल मीडिया के माध्यम से कई सैनिक और पत्रकार अपना विरोध दर्ज करा रहे हैं। पत्रकार मान अमन सिंह चिन्ना अपना विरोध दर्ज करते हुए लिखते हैं- “इसका नाम से कोई लेना देना नहीं है। यह सैनिक के बलिदान के बारे में है। हमारे दादा परदादा ने भारतीय सेना में रहकर देश की सेवा भी की और लड़ाई भी लड़ी।सरकार जो कर रही है वह सैनिकों की परंपरा का अपमान है।अनंत लौ बुझाने वाले को शर्म आनी चाहिए”
It has got nothing to do with names.
— Man Aman Singh Chhina (@manaman_chhina) January 21, 2022
It is about the sacrifice of the soldiers.
Our grandfathers and granduncles served and fought in Indian Army and many before them too.
What the govt is doing is an insult to the traditions of soldiering.
Shame on those killing the flame. https://t.co/V5cZDO88GL
भारतीय वायु सेना के रिटायर्ड एयर वायस मार्शल मनमोहन बहादुर ने ट्विटर पर प्रधानसेवक मोदी को टैग कर फैसला वापस लेने की मांग की। उन्होंने कहा – “कुछ भी ऐतिहासिक नहीं है।राष्ट्र निर्माण में प्रतीकों का अलग महत्व है।इंडिया गेट पर जल रही अनंत लौ प्रतिष्ठित है/थी।1971 युद्ध के समय एक पीढ़ी पली-बढ़ी।और टीवी पर देख सुन कर अगली पीढ़ी के रोंगटे खड़े हो गए थे।हम सब अपने जीवन का एक हिस्सा खो देंगे।”
Nothing historic.
— Manmohan Bahadur (@BahadurManmohan) January 21, 2022
Symbols hav an intangible VALUE in nation building — the 'Eternal Flame' at India Gate is/was iconic.
A generation grew up around the '71 war & the next had goose bumps hearing & seeing the last post on TV – & in person. WE ALL will lose a part of OUR lives. https://t.co/H8XUTWoV3J
वहीं रिटायर लेफ्टिनेंट जनरल सतीश दुआ ने इस ऐतिहासिक फैसले को सही ठहराया है।
MERGING OF ETERNAL FLAME.
— Lt Gen Satish Dua🇮🇳 (@TheSatishDua) January 21, 2022
It gives me great satisfaction that the eternal flame of Amar Jawan Jyoti at India Gate is being merged with the National War Memorial(NWM). As someone who had steered the design selection & construction of NWM, I'd been of this view all along… +
1/2 pic.twitter.com/9l9AL0Dpza
क्यों खास है अमर जवान ज्योति
अमर जवान ज्योति को भारत-पाक 1971 युद्ध में शहीद 3,843 भारतीय जवानों की याद में बनाया गया।इसी युद्ध में बांग्लादेश एक अलग देश बना था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 26 जनवरी 1972 को लौ जलाकर इसका उद्घाटन किया था।जिसके बाद से लगातार यह जलती आ रही है।भारत-पाक युद्ध(1971) के 50 साल पूरे होने पर भारत सरकार ने इसे नेशनल वॉर मेमोरियल में शिफ्ट करने का फैसला किया।
साल 2019 में नेशनल वॉर मेमोरियल का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था।यह वॉर मेमोरियल उन 26,466 सैनिकों और गुमनाम नायकों की याद में बनाया गया था जो आजादी के बाद देश की रक्षा करते हुए शहीद हुए थे।
बता दें कि इंडिया गेट को ब्रिटिश सरकार ने पहले विश्व युद्ध (1914-21) और एंग्लो-अफगान वार 84,000 शहीद भारतीय ब्रिटिश सैनिकों की याद में बनवाया था। इस पर उन सैनिकों के नाम भी लिखे हुए हैं।