नई दिल्ली / लखनऊ: उत्तर प्रदेश के शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वसीम रिजवी, जिन्होंने अब हिंदू धर्म अपना लिया है और सोमवार को गाजियाबाद के डासना में देवी मंदिर में एक समारोह में खुद को “जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी” नाम दिया, लंबे समय से विवादों में घिरे रहे हैं। वे कुछ विवादों के कारण हमेशा सुर्खियों में रहे हैं; कथित बलात्कार के मामले से लेकर वक्फ संपत्ति की कथित अवैध बिक्री तक, कुरान की आयतें हटाने के लिए रिट याचिका दायर करने से लेकर मुस्लिम पैगंबर मुहम्मद पर अपमानजनक किताब प्रकाशित करने तक के विवाद उनके नाम के साथ जुड़े हुए हैं। एक मायने में उनका नाम और विवाद एक दूसरे के पर्याय बन गए हैं .
रेप केस का आरोप
जून 2021 में एक महिला ने वसीम रिज़वी पर बलात्कार का आरोप लगाया; महिला का कहना है कि कि वसीम रिज़वी ने उसके साथ कई बार बलात्कार किया। पीड़ित महिला रिज़वी के ड्राइवर की पत्नी है। उसका आरोप है कि रिज़वी उसके पति को काम के सिलसिले में नियमित रूप से कहीं दूर भेज देते थे और उनकी अनुपस्थिति में रिज़वी उसके साथ बलात्कार करते थे। पीड़ित महिला ने यह भी आरोप लगाया कि रिज़वी की करतूत का खुलासा करने के बाद जब मेरे पति ने उससे बात की तो मेरे पति को पीटा गया। इसके बाद पीड़ित महिला ने अदालत का दरवाजा खटखटाया। इस मामले में लखनऊ के अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट एके श्रीवास्तव के जांच के आदेश दिए। कोर्ट के आदेश के बाद ही रिज़वी के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार), 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना), 506 (आपराधिक धमकी) और 392 (डकैती) के तहत मामला दर्ज किया गया था। वसीम रिजवी ने सभी आरोपों से इनकार किया है.
पत्नी से मारपीट का आरोप
जून 2019 में सामाजिक कार्यकर्ता फरहा नकवी ने वसीम रिज़वी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई कि वह अपनी पत्नी को नियमित रूप से पीटता है और उसे बंदी बना रखा है। ‘मेरा फाउंडेशन’ की अध्यक्ष श्रीमती नकवी ने दावा किया कि जब रिज़वी की पत्नी से मिलने की कोशिश की तो करीब एक दर्जन गुंडों से उसका सामना
हुआ और उन्होंने धमकी दी। वसीम रिज़वी ने आरोपों से इनकार किया और कहा कि यह उनके खिलाफ साजिश है।

वक्फ जमीन की अवैध बिक्री
सीबीआई ने उत्तर प्रदेश में वक्फ संपत्तियों और जमीन के प्लॉटों की कथित अवैध बिक्री और हस्तांतरण के मामलों में वसीम रिजवी और अन्य के खिलाफ नवंबर 2020 में जांच शुरू की। उत्तर प्रदेश पुलिस ने 2016-17 में रिजवी और अन्य के खिलाफ दो अलग-अलग मामले दर्ज किए थे। राज्य सरकार ने 2019 में सीबीआई जांच की सिफारिश की थी।
रिजवी के खिलाफ 2016 में दर्ज किया गया पहला मामला प्रयागराज के इमामबाड़ा गुलाम हैदर में दुकानों के कथित अवैध निर्माण से संबंधित है। दूसरा मामला 2017 का है जो कानपुर में जमीन के एक प्लॉट से जुड़ा है। उस मामले में रिजवी पर प्लॉट के केयरटेकर को धोखा देने और डराने-धमकाने का आरोप है।
कुछ दो तो कुछ लो?
जो लोग वसीम रिज़वी को बख़ूबी जानते हैं, वे यह भी जानते हैं कि रिजवी किस तरह अवसरों को भुनाते हैं। रिज़वी कभी प्रमुख और प्रभावशाली शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जवाद के बहुत करीबी थे। उनकी मदद से रिज़वी ने ऊँचा मुकाम हासिल किया और बाद में उन्हीं को टंगड़ी मार दी। रिज़वी 2000 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर पार्षद बन गए। उन्होंने शिया वक्फ बोर्ड की सदस्यता का चुनाव जीता और कल्बे जवाद ने 2008 में मायावती शासन के दौरान उन्हें बोर्ड का अध्यक्ष बना दिया।
चोला बदलकर वसीम रिजवी से जितेंद्र नारायण त्यागी बने साहब के बारे में ये खबर भी आज छपी है … pic.twitter.com/ZysxTtZK2L
— Ajit Anjum (@ajitanjum) December 7, 2021
लेकिन जल्द ही रिज़वी ने 2012 में अखिलेश यादव की सरकार के समय पाला बदल लिया। रिज़वी ने शिया मौलवियों पर हमला करना शुरू कर दिया और अखिलेश सरकार के आदेश पर शिया वक्फ बोर्ड फिर से स्थापित किए जाने के बाद आजम खान के पाले में चले गए। उन्होंने 2017 में यूपी में बीजेपी की सरकार बनने तक आजम खान का साथ देना जारी रखा। रिजवी ने अचानक अपना लहजा बदल लिया और मुस्लिम विरोधी, इस्लाम विरोधी बयानबाजी शुरू कर दी। कल्बे जवाद की तरह उन्होंने आजम खान को छोड़ दिया। इन सभी घटनाओं से यह स्पष्ट है कि रिज़वी का रूख अवसरों के मुताबिक बदलता है, इसके अलावा कुछ नहीं।
यूपी में कुछ समय बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। वसीम रिज़वी के लिए एक और अवसर आ गया है। उस अवसर को भुनाने के लिए उन्होंने अब स्वामी यति नरसिंहानंद सरस्वती जैसे विवादास्पद लोगों का हाथ थाम लिया है। अगर किसी को लगता है कि वसीम रिज़वी जैसे लोग वफादार होंगे तो वे पूरी तरह गलत हैं।